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Wednesday, June 18, 2025
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 मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने वाली खेती को अपनाएं

एसीएन

टीएनसी के प्रोजैक्ट प्राणा से जुड़े प्रगतिशील किसान

एक मंच पर आए कृषि विभाग के अधिकारी व किसान

पंजाब के किसान अब जागरूक होकर न केवल वैकल्पिक फसलों को अपना रहे हैं बल्कि साथी किसानों को भी नो बर्न खेती अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। पंजाब के 12 जिलों में पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रही द नेचर कंजरवैंसी के प्रोजैक्ट प्राणा से जुडक़र पहली बार अमृतसर व आसपास के जिलों के प्रगतिशील किसान मीडिया से रूबरू हुए और पुनरउत्तपति वाली फसलों को अपनाने व मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने के तरीके अपनाने पर जोर दिया।
विश्व मृदा दिवस (वल्र्ड सॉयल डे) के उपलक्ष्य में आज यहां आयोजित पत्रकार वार्ता के दौरान बराड़ गांव के प्रगतिशील किसान सरूप सिंह ने बताया कि वह फसली चक्र से बाहर निकलकर वैकल्पिक खेती को अपना रहे हैं। पंजाब में मिट्टी की उपजाऊ शक्ति जहां धीरे-धीरे कम हो रही है वहीं भूमिगत जलस्तर पर लगातार नीचे जा रहा है। वैकल्पिक खेती से न केवल आमदन बढ़ती है बल्कि मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी बरकरार रहती है।
गांव बेरोवाल कंग के किसान बलकार सिंह के अनुसार उन्होंने कई वर्षों से पराली नहीं जलाई है और पराली का इस्तेमाल खेत में ही कर रहे हैं। उन्होंने किसानों से अपील की कि अब आने वाला समय कम पानी वाली फसलों की पैदावार करते हुए मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने का है।

गांव पादरी के किसान हरपाल सिंह के अनुसार उनकी ज्यादातर जमीन पर गेहूं व धान की खेती होती है, लेकिन वह भी पराली जलाने को पूरी तरह त्याग चुके हैं।

तरनतारन के गांव बाकीपुर के प्रगतिशील किसान गुरभेज सिंह के अनुसार पंजाब में मिट्टी की उपजाऊ शक्ति लगातार कम होती जा रही है। ऐसे में हम सभी को मिलकर अभियान चलाने की जरूरत है।
पिछले चार साल से पराली नहीं जलाने वाले तरनतारन के किसान बोहड़ सिंह ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि अब भूमिगत जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है। ऐसे में उन्होंने आलू, चना, सरसों आदि की खेती पर जोर देना शुरू कर दिया है।
पंजाब में मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने पर जोर देते हुए तरनतारन जिले से आये किसान अमरीक सिंह
ने बताया कि वह पिछले दो साल से पराली नहीं जला रहे हैं। उन्होंने कहा कि अपने बच्चों के भविष्य को देखते हुए मिट्टी और पानी को बचाने के लिए अभी से अभियान चलाए जाने की जरूरत है।
यहां पहुंचे किसानों ने आसपास के जिलों के किसानों से अपील की कि वह नो बर्न खेती को अपनाते हुए कम पानी की खप्त वाली फसलों को पैदा करें। जिससे उनके बच्चों का भविष्य सुरक्षित होगा।
इस अवसर पर विशेष रूप से पहुंचे पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ मृदा वैज्ञानिक डॉ.रंजन भट्ट ने किसानों को अपील की कि वह विश्व मृदा दिवस के अवसर पर यह प्रण लें कि मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने के लिए फसली चक्र से बाहर आकर आधुनिक खेती को भी अपनाएंगे। उन्होंने कहा कि अगर आज मिट्टी को बचाने के लिए अभियान शुरू नहीं किया गया तो हमारी आने वाली पीढिय़ों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
द नेचर कंजरवेंसी इंडिया द्वारा चलाई जा रही प्राणा परियोजना के निदेशक डॉ.गुरु कोप्पा ने कहा कि टिकाऊ, लाभकारी और पुनर्योजी कृषि की हमें आदत डालनी होगी। फसल अवशेष प्रबंधन सर्वोपरि है लेकिन इसे जलाना सही नहीं है बल्कि इसका अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रभाव का आकलन करना जरूरी है। द नेचर कंजरवेंसी द्वारा आयोजित ‘पंजाब में पुनर्योजी कृषि और फसल विविधीकरण की आवश्यकता’ पर एक मीडिया कार्यशाला को संबोधित कर रहे डॉ.कोप्पा ने कहा कि प्रकृति, मिट्टी और पानी के अनुकूल फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) करना आज के कृषि की जरुरत है।
एक वैश्विक संरक्षण संगठन द नेचर कंजरवेंसी ने पंजाब में प्रोजेक्ट प्राणा (प्रोमोटिंग रीजनरेटिव एंड नो-बर्न एग्रीकल्चर) लॉन्च किया है। प्राणा फसल अवशेष को जलाने से रोकने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने की चार साल की महत्वाकांक्षी परियोजना है।

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