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Friday, November 22, 2024
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अश्वनी शर्मा ने भगवंत मान को पत्र लिख कर सदन की असंवैधानिक कार्यवाही का हिस्सा ना बनने की दी जानकारी

चंडीगढ़

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अश्वनी शर्मा ने मुख्यमंत्री भगवत मान को पत्र लिखकर सदन में आप सरकार के उपद्रवी विधायकों के क्रूर और असंसदीय तरीके से सबसे किए गए दुर्व्यवहार तथा माननीय राज्यपाल को सदन चलाने संबंधी दी गई गलत जानकारी पर भाजपा विधायकों द्वारा सदन में हिस्सा ना लेने की जानकारी दी है। शर्मा ने कहा कि एक मुख्यमंत्री के नाते भगवंत मान पंजाब में सरकार चलने में बिलकुल फेल साबित हुए हैं।
अश्वनी शर्मा ने पत्र में कहा कि मुझे यह कहते हुए बहुत खेद हो रहा है कि आप न केवल राज्यपाल से झूठ बोलने वाले मुख्यमंत्री के रूप में अपने कर्तव्य में बुरी तरह विफल रहे हैं, बल्कि आप 27 सितंबर को सदन के नेता के रूप में भी विफल रहे, जहां आपने अपने उपद्रवी विधायकों को क्रूर और असंसदीय तरीके से सबसे दुर्व्यवहार करने की अनुमति दी। भगवंत मान द्वारा बिजली, जीएसटी और पराली जलाने जैसे मुद्दों को सूचीबद्ध करके बुलाए गए सदन की झूठी जानकारी माननीय राज्यपाल को देकर से झूठ बोला और उन एजेंडो को छुपाते हुए सबसे पहले आपने पवित्र सदन के पिछले दरवाजे के माध्यम से अपने असंवैधानिक ‘विश्वास मत’ प्रस्ताव लाकर संविधान की उलंघना करते हुए पंजाब की जनता के साथ भी धोखा किया है।
अश्वनी शर्मा ने कहा कि भगवंत मान द्वारा ऐसा किया जाना न केवल माननीय राज्यपाल के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात है, पंजाब के संविधान, लोकतंत्र और लोगों के साथ भी विश्वासघात किया है। माननीय राजपाल राज्य के संवैधानिक प्रमुख हैं और विधानसभा के एक महत्वपूर्ण संवैधानिक अधिकारी भी हैं। आपके विधायकों द्वारा विपक्षी विधायकों के साथ भ्रष्ट भाषा में जो दुर्व्यवहार किया है, वह अति घोर निंदनीय है और पंजाब के इतिहास में इसे एक काले दिन के रूप में याद किया जाएगा।
अश्वनी शर्मा ने भगवंत मान से कहा कि आप खुद आठ साल सांसद रहे हैं। आपने प्रतिनिधित्व भी किया और बाद में अपनी पार्टी के एकमात्र प्रतिनिधि भी रहे, लेकिन आपने कभी ऐसी स्थिति का सामना नहीं किया। सत्ताधारी पार्टी के किसी भी सांसद ने आपकी आवाज दबाने की कोशिश नहीं की। पंजाब विधानसभा में भी ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। मैं सत्र का बहिष्कार करने के लिए अपनी पार्टी के रुख को दोबारा दोहरा रहा हूं, क्योंकि हम सदन में असंवैधानिक कार्यवाही का हिस्सा नहीं बन सकते, जिसने पंजाब के विधायी इतिहास पर एक काला धब्बा लगा दिया है।

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