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Friday, November 22, 2024
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Yoga : प्राणायाम मन को वश में रखने का सर्वोत्तम उपाय

मन की स्थिरता

स्वामी विवेकानंद का कहना है—मन जितना निर्मल होगा, उसे वश में करना उतना ही सरल होगा। यदि तुम उसे वश में रखना चाहते हो तो मन की निर्मलता पर ध्यान दो मन को वश में करने के लिए पूर्ण नैतिकता हो सब कुछ है। जो व्यक्ति पूर्ण नैतिक है, उसे कुछ करना शेष नहीं, वह मुक्त है।

मन को वश में रखने का सर्वोत्तम उपाय है- प्राणायाम

प्राणायाम मन को वश में रखने का सर्वोत्तम उपाय है। जब मन क्षुब्ध होता है तो सांस तेज और अनियमित हो जाती है। प्राणायाम के पूरक, कुम्भक और रेचक के नियमित अभ्यास से मन शनैः-शनैः हमारे नियंत्रण में होता जाता है। मन को वश में करने से पूर्व हमें उसका भली प्रकार अध्ययन करना चाहिए।

मन को वश में करना

चंचल मन को वश में करने के लिए उसे संयत करके विषयों से खींचना और एक विचार में केन्द्रित करना होगा। इस क्रिया को बार-बार करना आवश्यकहै इच्छा शक्ति द्वारा मन को वश में करके उसको क्रिया रोककर ईश्वर की महिमा का चिन्तन करना चाहिए। मन को स्थिर करने का सबसे सरल उपाय है- चुपचाप बैठ जाना और कुछ क्षण के लिए वह जहां जाए, जाने देना। इसके लिए प्राणायाम के किसी भी आसन में बैठकर दृढ़तापूर्वक इस भाव का चिन्तन करें- “मैं मन को विचरण करते हुए देख रहा हूं लेकिन मैं मन नहीं हूं।”

इसके बाद यह कल्पना करें कि मन आपसे बिलकुल भिन्न है। यह भी सोचें कि मन आपके सामने एक विस्तृत तरंगहीन सरोवर के समान है और आने- जाने वाले विचार इसके तल पर उठने वाले बुलबुले हैं। अतएव विचारों को रोकने का प्रयास न करें, वरन उनको देखें। जैसे जैसे वे विचरण करें, वैसे-वैसे आप भी उनके पीछे चलें। यह क्रिया धीरे-धीरे मन के वृत्तों को सीमित कर देगी।

इसका कारण यह है कि मन विचार की विस्तृत परिधि में घूमता है और ये परिधियां विस्तृत होकर निरंतर बढ़ने वाले वृत्तों में फैलती रहती हैं। ठीक वैसे ही जैसे किसी सरोवर में ढेला फेंकने पर होता है। हम इस क्रिया को उलट देना चाहते हैं और बड़े वृत्तों से आरंभ करके उन्हें छोटा बनाते चले जाते हैं। यहां तक कि हम अपने मन को एक बिन्दु पर स्थिर करके उसे वहीं रोक सकें।

तत्पश्चात दृढ़तापूर्वक इस भाव का चिंतन करें-मैं मन नहीं हूं। मैं देखता हूं कि मैं सोच रहा हूं। मैं अपने मन तथा अपनी क्रिया का अवलोकन कर रहा हूं।” इस प्रकार प्रतिदिन मन और भावना से अपने को अभिन्न समझने का भाव पैदा होता जाएगा। अंत में आप अपने को मन से बिलकुल अलग कर सकेंगे और वास्तव में इसे अपने से भिन्न जान सकेंगे।

प्राणायाम का जानकार इस क्रिया को कहीं अधिक सहजता और शीघ्रता से सम्पन्न कर सकता है। इतनी सफलता प्राप्त करने के बाद आपका मन आपका दास हो जाएगा और उसके ऊपर अपनी इच्छानुसार शासन किया जा सकेगा। इस प्रकार इन्द्रियों से परे हो जाना योग की प्रथम स्थिति है।

जब हम यह अभ्यास आरंभ करते हैं तो मन में बहुत घिनौने विचार उठते हैं। ज्यों-ज्यों अभ्यास आगे बढ़ता है, त्यों-त्यों कुछ समय के लिए मन की चंचलता बढ़ती हुई मालूम होती है। किन्तु हम जितना ही अपने मन से अलग होने का प्रयास करेंगे, मन के ये खेल उतने ही कम होते जाएंगे। धीरे-धीरे उसकी चंचलता कम हो जाएगी। अंत में मन सर्कस के घोड़े के समान सध जाएगा। वह अनुशासन में रहते हुए भी बली रहेगा। इसलिए कुछ समय तक प्रतिदिन कई बार नियमपूर्वक हमें अपने मन का पीछा करना चाहिए। इस अभ्यास को तब तक करना चाहिए जब तक आपका मन आपके कथनानुसार न चलने लगे।
इच्छा शक्ति का विकास

प्राणायाम इच्छा शक्ति के विकास में भी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्राणायाम के नियमित अभ्यास से मनुष्य की इच्छा शक्ति सशक्त होती है। दृढ़ इच्छा शक्ति वाले व्यक्ति ही जीवन में बड़ी सफलताएं हासिल कर पाते हैं। इस संबंध में स्वामी विवेकानंद का कथन इस प्रकार है-मनुष्य की इच्छा शक्ति चरित्र से उत्पन्न होती है और चरित्र कर्मों से गठित होता है। अतएव जैसा कर्म होता है, वैसी ही इच्छा शक्ति को अभिव्यक्ति होती है।

प्राणायाम साधना से साधक के स्थूल तथा सूक्ष्म विकार नष्ट हो जाते हैं और उसका चरित्र उज्जवल हो जाता है। फलतः उज्जवल चरित्र के चलते उसकी इच्छा शक्ति भी निष्पाप और निष्कलंक होती है।

क्या है इच्छा शक्ति

इच्छा शक्ति हमारे मन की वह सकारात्मक और रचनात्मक क्रिया है जो हमें अभीष्ट कार्यों को निश्चित रूप से करने तथा अनिष्ट कार्यों से बचने के लिए प्रेरित और प्रवृत्त करती है। यह मन की वह शक्ति है जो अनुकूल-प्रतिकूल तथा ज्ञात-अज्ञात सभी परिस्थितियों में हमें उचित लगने वाले कार्यों को करने और अनुचित लगने वाले कार्यों से बचाने में समर्थ बनाती है।

यदि हम प्राणायाम द्वारा मन को पूर्णतः नियंत्रित कर लेते हैं तो वह हमारे संकेतों को समझने के योग्य हो जाता है। मन के नियंत्रण और एकाग्रता से ही इच्छा शक्ति का विकास संभव है। इस प्रकार हम देखते हैं कि मन के नियंत्रण तथा इच्छा शक्ति के विकास में प्राणायाम बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकता है।

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